नई दिल्ली - देश के दवा नियामक के रूप में राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (एनपीपीए) दवा कंपनियों से 8098 करोड़ रूपये की वसूली (जो कंपनियों ने ओवरचार्जिंग के रूप में वसूला था) करने के लिए खुद को तैयार कर रहा है जिनमें देश की प्रमुख दवा कंपनियों सिप्ला, सन फार्मा, टोरेंट के नाम है, एनपीपीए द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार 334 मामलों में सबसे अधिक मामले उपरोक्त कंपनियों द्वारा ही लड़े जा रहे हैं, मुकदमों और एनपीपीए द्वारा लगाये गये आरोपों पर अपनी टिप्पणी मांगने के लिए सिप्ला को भेजे गए एक ई-मेल का कोई जवाब नहीं आया। डेटा से पता चलता है कि सिप्ला लिमिटेड और एनपीपीए के बीच अधिक मूल्य वसूलने के 35 मुकदमे चल रहे हैं जो कि 1194 करो़ड़ रूपये जो ब्याज सहित 3641.9 करोड़ बनते हैं। इनमें लगभग 5 मामलों में सिप्ला अपनी साझेदार फर्म के साथ पक्षकार है। अन्य दो कंपनियों के विपरीत 35 में से केवल चार मामलों में एनपीपीए आंशिक वसूली करने में सक्षम हुआ। इन चारों मामलों में 179.9 करोड़ की वसूली की गई जबकि बाकी के करीब 3462.06 करोड़ बकाया है सन फार्मा और एनपीपीए 28 मुकदमों में उलझी हुई है सिमें उसने लगभग सभी मामलों में आंशिक रूप से राशि का भुगतान किया है प्राधिकरण ने मूलधन से अधिक वसूलने का दावा किया है कंपनी से 222.07 करोड़ रू. जो ब्याज सहित 334.42 करोड़ रूपये बनते हैं। इसमें प्राधिकरण को केवल 58.6 करोड़ की वसूली प्राप्त हुई है। आंकड़ों के अनुसार जिन अन्य कंपनियों प्राधिकरण के पास कई मुकदमे लंबित है उनमें डॉ. रेड्डीज ल्युपिन लिमिटेड केडिला, फाईजर और सनौफी आदि है।
चेन्नई - पंजीकृत स्नातक फार्मासिस्ट (बी फार्म) ने राज्य सरकार पर भेदभाव का आरोप लगाते हुए इंडियन फार्मेसी ग्रेजुएट्स एसोसिएशन (टीएनआईपीजीए) का तामिलनाडू चैप्टर ुार्मेसी स्नातकों को वंचित करने के खिलाफ स्वास्थ्य विभाग के साथ कानूनी लड़ाई के लिए कमर कस रहा है। राज्य में आई पी जी ए पदाधिकारियों के अनुसार राज्य का स्वास्थ्य विभाग सरकारी अस्पतालों और अन्य स्वासथ्य केनद्रों में फार्मासिस्ट के पद के लिए केवल डी फार्मेसी में डिप्लोमा धारकों की भर्ती कर रहा है हालांकि फार्मेसी अधिनियम 1948 में कहा गया है कि पंजीकृत फार्मासिस्ट अस्पताल या समुदाय में स्थापित फार्मेसी में डिस्पेंसर बन सकता है तामिलनाडू का स्वास्थ्य विभाग इस तरह से कार्य कर रहा है कि फार्मासिस्ट का पद पूरी तरह से डिप्लोमा धारकों के लिए आरक्षित है, सरकार के इस फैसले के खिलाफ फार्मेसी स्नातक संघ ने चैन्नई में मद्रास उच्च न्यायालय में एक मुकद्मा दायर किया है जिसमें सरकारी सेवाओं में फार्मासिस्ट पद के लिए आवेदन करने में सभी पंजीकृत फार्मासिस्ट चाहे डिप्लोमा या डिग्रीधारक हो के लिए समान प्रतिनिधित्व की मांग की है एसोसिएशन ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है क्योंकि चिकित्सा सेवा भर्ती बोर्ड, डीपीएच, डीएमएस और डीएमई से साकारात्मक प्रतिक्रिया प्राप्त करने के अपने सभी प्रयासों का कोई परिणाम नहीं निकला। टीएनआईपीजीऐ के अध्यक्ष एन नारायण स्वामी ने कहा 1953 से राज्य का स्वास्थ्य विभाग फार्मासिस्ट रिक्तियों के लिए केवल डिप्लोमा धारको को भर्ती कर रहा है जब कई अन्य राज्यों ने सभी पंजीकृत फार्मासिस्टों के पक्ष में भर्ती मानदंडों को बदल दिया है। फार्मेसी अधिनियम के अनुसर एक पंजीकृत फार्मासिस्ट के पास डिप्लोमा या डिग्री या स्नातकोत्तर या नवीनतम डाक्टरेट फार्मेसी प्रोग्राम (फार्म डी) की योग्यता हो सकती है चूंकि अधिनियम अनिवार्य करता है कि कोई भी पंजीकृत फार्मासिस्ट बनने के योग्य है, इसलिए भर्ती एजेंसी स्नातक या स्नातकोत्तर को आवेदन करने से नहीं रोक सकती है उन्होंने कहा कि यह कानून के खिलाफ है। इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया देते हुए अखिल भारतीय फार्मासिस्ट एसोसिएशन इन बिहार के सचिव अर्जेश राज ने कहा कि बिहार में स्नातक फार्मासिस्टों के भी उसी स्थिति का सामना करना पड़ता है क्योंकि सरकार फार्मासिस्टों के पद के लिए केवल डिप्लोमा धारको ंसे आदेदन चाहती हे। सरकार के इस फैसले के खिलाफ एबीपीए ने पटना हाईकोर्ट में केस दर्ज कराया है भारतीय फार्मेसी परिषद् (पीसीआई) ने अदालत को सूचित किया कि डी फार्म के साथ डिग्रीधारक और स्नातकोत्तर भी पद के आवेदन के पात्र हैं उन्होंने कहा कि मामला अदालत में लंबित है।